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श्रीलंका में त्राहि-त्राहि

डॉ. सुधीर सक्सेना

‘‘वित्तिय प्रबंधन में विफलता के चलते श्रीलंका में स्थितियां सम से विषम हो गयी हैं। भयावह मुद्रास्फीति और अंधाधुंध कर्ज ने चौतरफा संकट खड़ा कर दिया है, फलत: श्रीलंका इन दिनों अंधे बोगदे में नजऱ आ रहा है…’’
– शरत कोनगहगे
शरत कोनगहगे श्रीलंका की जानी-मानी शख्सियत हैं, राजनीतिज्ञ, वकील, राजनयिक, मीडियाकर्मी और ख्यातिलब्ध सलाहकार। वे राष्ट्रपति और मंत्रालयों के सलाहकार रहे, सांसद रहे, ‘रूपवाहिनी’ के चेयरमैन रहे, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में राजदूत और दक्षिण अफ्रीका में उच्चायुक्त रहे। संप्रति वे दु:खी हैं। रूपये के अबाध अवमूल्यन और फोरेक्स-भंडार में अभूतपूर्व कमी ने जरूरी चीजों के अभाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है। सडक़ों पर बसों और गाडिय़ों के चक्के थम गये हैं। जिसों की कीमतें आसमान छू रही है।

सुभाषिणी रत्नायका विश्वविद्यालय में शिक्षिका हैं। वे बताती हैं कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और जीवन कठिन से कठिनतर। राजधानी कोलंबो में स्थिति विकराल होते देख वे कोलंबो से सुदूर कैंडी चली गई हैं, जहां उनके पति का घर और खेती-बाड़ी है। बताती हैं कि हालात सर्वत्र चिंताजनक हैं। शहरों में 12 से 15 घंटे बिजली कटौती हो रही है। स्ट्रीट लाइटें गुल हैं। न तो सरकारी बिजली संस्थानों के पास ईंधन है और न ही निजी परिवहन कंपनियों के पास। कीमतों में आग लगी हुई है। श्रीलंका अपने इतिहास के भयावहतम पॉवरकट से गुजर रहा है। सभी 20 विद्युतजोनों में बिजली कटौती का ऐलान किया गया है। दुकानों में दवाओं का अभाव है। हालात का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अस्पतालों में भर्ती और ऑपरेशन प्रभावित हुए हैं। जीना इस कदर मुहाल है कि पूछिये मत। एक लिटर पेट्रोल की कीमत 254 रुपये है, जबकि एक लिटर दूध 263 रुपये में बिक रहा है। डबलरोटी के लिए डेढ़ सौ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। चीनी की कीमत 300 रुपये प्रति किलो तक पहुंच रही है। चावल 500 रुपये प्रति किलो है तो मिर्च 700 रुपये के पार। आलू 200 रुपये किलो है। करीब एक हजार बेकरियां बंद हो गई हैं। आप श्रीलंका में हैं तो यकीनन खुशकिस्मत कहे जायेंगे यदि आपको सौ रुपया खर्च कर एक प्याली चाय मिल जाये।

अजित निशांत वरिष्ठ पत्रकार हैं। कोलंबो और दिल्ली में उनसे मुलाकातें हुईं। अब फोन पर बात हुई तो उन्होंने हादसे की पूर्वपीठिका समझाने की कोशिश की। यह स्थिति रातोंरात उत्पन्न नहीं हुई है। राजपक्षे सरकार ने स्थितियों से निपटने में कोताही बरती। हंबनटोटा का जिक्र न भी हो तो भी चीन व अन्य देशों से भारी ऋण लिया गया। परिणामत: फोरेक्स भंडार में 70 फीसद से अधिक गिरावट आई। अब श्रीलंका के पास मात्र 2.36 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बची है, जबकि करीब तीन साल पहले विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर था। अब उसके पास ब्याज और कर्ज को चुकाने के लिए पैसा नहीं है। जरूरी चीजों का आयात करें तो कैसे करें?

श्रीलंका सुंदर और सुरम्य द्वीप है, भारत का सदाशयी पड़ोसी। निर्गुट आंदोलन में भारत का साथी। इतना साफ-सुथरा कि आप विस्मय-विमुग्ध हो उठें। पुलिन (समुद्र तट) लुभाते हैं। रंग और स्वाद की उम्दा चाय के बागान और गरम मसालों की मह-मह खेती श्रीलंका का वैशिष्ट्य हैं। अपने प्रतापी राजवंशों, राजधर्म और संस्कृति के लिए श्रीलंका भारत का ऋणी है। दोनों देशों को समुद्र जोड़ता है। ऐसे श्रीलंका को लगता है कि किसी की नजर लग गयी है। अजित निशांत कहते हैं-‘‘परिस्थितियों के बिगडऩे में कोविड महामारी का भी बड़ा हाथ है। इसने खेती-बाड़ी और कारोबार तो प्रभावित किया ही, पर्यटन का भी सत्यानाश कर दिया। पर्यटन श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमाई का बड़ा स्रोत था। इससे करीब 20 लाख लोग जुड़े थे और सालाना करीब 5 अरब डॉलर की आय होती थी। चिंतनीय स्थितियों का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि एजुकेशनल बोर्ड के पास कागज-स्याही नहीं है, लिहाजा उसने परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। अखबारों की छपाई भी बंद है।’’

श्रीलंका की आबादी दो करोड़ 20 लाख के आसपास है। लंबे समय तक वह अशांत और गृहयुद्ध से ग्रस्त रहा है। इसमें शक नहीं कि गोतबाया राजपक्षे के सत्ता में आने के बाद अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी है। यह भी निर्विवाद है कि यह राजपक्षे-परिवार के वर्चस्व का दौर है। राजनीति और व्यापार-वाणिज्य में परिवार की तूती बोलती है। भाई महिंदा प्रधानमंत्री हैं। एक अन्य भाई बासिल वित्तमंत्री और एक अन्य विपुल खेलमंत्री। इस राजवंश का प्रादुर्भाव और प्रभुत्व अलग कथा का विषय है, किन्तु दो-मत नहीं कि राजपक्षे परिवार सिंहली राष्ट्रवाद और राजपक्षे-परिवार की लौह-छवि तथा देश की समृद्धि के सब्जबाग के बूते सत्ता में आया है। श्रीलंका में बरसों रहे एक राजनयिक ने बताया कि विक्रमसिंघे की तमिलों के प्रति नरम-नीति को बहुसंख्यक सिंहली जनता पसंद नहीं करती थी। इसी भावनात्मक ज्वार ने सत्ताच्युत राजपक्षे परिवार की एक बार फिर लॉटरी खोल दी। सन् 2019 में कोलंबो के सीरियल ब्लास्ट ने उनके समर्थन का ईंधन जुटाया। बहरहाल, श्रीलंका का रूपया आज अपने न्यूनतम स्तर पर है। आज एक डॉलर के लिए आपको वहां 318 रुपये चुकाने होंगे। भारत में यही विनिमय दर 76, पाकिस्तान में 182, मारीशस में 45 तथा नेपाल में 121 है। श्रीलंका गत अप्रैल तक 32 अरब डॉलर का विदेशी ऋण ले चुका था। टेंट में रकम नहीं है, जबकि उसे जुलाई तक एक अरब और आगामी कुछ माह में 7 अरब डॉलर से अधिक की रकम चुकानी है। उसे 10 अरब डॉलर का सालाना व्यापारिक घाटा होने का अनुमान है। चीन से कर्ज की शर्तों और हंबनटोटा बंदरगाह के भविष्य को लेकर भी आशंकाओं का बाजार गर्म है।

यह इन्हीं विषम परिस्थितियों का दुष्परिणाम है कि गुरूवार 31 मार्च की रात्रि को सैकड़ों लोगों की क्षुब्ध भीड़ ने मिरिहान की ओर रुख किया और राष्ट्रपति के निजी निवास को घेर लिया। बेकाबू महंगाई और किल्लत से त्रस्त लोग राष्ट्रपति गोतेबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। आंसू गैस और पानी की बौछारों के बाद पुलिस ने गोलियां दागीं और रात का कर्फ्यू लगा दिया। गोलीबारी में दस लोग आहत हुए। अजित निशांत के अनुसार प्रदर्शनों का यह सिलसिला अभी और गति पकड़ेगा।

श्रीलंका का यह संकट अभूतपूर्व और भयावह है। इस विषम वेला में श्रीलंका को सबसे बड़ा आसरा भारत का है। और भारत ने भी हालात की नाजुकी और अपने ऐतिहासिक दायित्व को समझा है। भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर की ताजा कोलंबो यात्रा इसी की परिचायक है। भारत के लिए ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति मायने रखती है। वक्त के तकाजे को बूझ भारत ने 1.5 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी है, जबकि श्रीलंका ने एक अरब डॉलर और मांगे हैं। जहांतक इस सर्वग्रासी संकट से मुक्ति की बात है, इससे मुक्ति का कोई ‘शॉर्ट कट’ नहीं है। शरत कोनगहगे के ही शब्दों में समापन करें तो हर बोगदे की तरह इसका भी सिरा है और उस तक पहुंचने में समय लगेगा। प्रबंधन और नियोजन में सूझबूझ और धैर्य के बल पर श्रीलंका आहिस्ता-आहिस्ता इससे पार पा सकता है। हां, इस बीच उथलपुथल के दौरों से इंकार नहीं किया जा सकता।

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