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आदिवासी, दलित और पिछड़ों की तराजू पर उपचुनाव!

अरुण पटेल

मध्यप्रदेश में होने वाले एक लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनावों में जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे चुनावी लड़ाई भाजपा व कांग्रेस के बीच कांटेदार होती जा रही है। इन उपचुनावों में आदिवासियों, दलितों और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भूमिका अलग-अलग क्षेत्रों में निर्णायक होने वाली है तथा भाजपा या कांग्रेस की जीत का रास्ता इन्हीं वर्गों के विश्वास   जीतने पर अधिक टिका हुआ है। यही कारण है कि कुछ क्षेत्रों में आदिवासी निर्णायक होंगे तो कुछ क्षेत्रों में कहीं दलित तो कहीं पिछड़ा वर्ग के मतदाता जीत की पटकथा को अंतिम रुप देंगे। भाजपा और कांग्रेस जिन क्षेत्रों को अपने लिए आसान समझ रहे थे उन क्षेत्रों में कड़ा चुनावी मुकाबला होने के कारण दोनों के अनुमान गड़बड़ा गए हैं और दोनों में से किसका दावा सही निकलता है यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इन वर्गों के बीच भाजपा या कांग्रेस में से कौन अपनी पकड़ मजबूत साबित कर पाता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रयास है कि चारों जगह भाजपा की विजय पताका लहराये इसलिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जो नेता चुनाव प्रचार में जुट गए हैं या जुटने वाले हैं उनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीरेन्द्र कुमार, प्रहलाद सिंह पटेल, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शामिल हैं। जहां तक सत्ता का सवाल है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन की ओर से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने चुनावी रणनीति व प्रचार की कमान संभाल रखी है। कांग्रेस की ओर से केवल कमलनाथ प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं तो एक दिन के लिए खंडवा में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तथा राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अपनी आमद दर्ज कराने वाले हैं, कांग्रेस के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव मुकुल वासनिक प्रदेश में अपनी आमद दर्ज करा चुके हैं। अन्य  नेताओं में अरुण यादव और अजय सिंह चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं।

खंडवा लोकसभा उपचुनाव में असली मुकाबला भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल और कांग्रेस के राजनारायण सिंह पूरनी के बीच हो रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में सबसे दिलचस्प बात यही है कि दोनों ही उम्मीदवारों को अंदर ही अंदर भीतरघात की आशंका बुरी तरह सता रही है। जिसके असंतुष्टों का पौरुष जोर मारेगा वह उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंच पाएगा। खंडवा लोकसभा क्षेत्र से तीन चुनाव लडऩे वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव जो स्वयं इस क्षेत्र से टिकट के दावेदार थे और बाद में पारिवारिक कारणों से चुनाव लडऩे में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी थी वह पूरी मुस्तैदी से न केवल चुनाव प्रचार में बल्कि सबके बीच सामंजस्य बिठाने में लगे हुए हैं तो भाजपा में यह भूमिका विधायक देवेंद्र वर्मा के हाथों में है। दोनों ही दलों ने टिकट के दावेदारों को दरकिनार करते हुए उन चेहरों पर दांव लगाया है जो इस दौड़ में शामिल ही नहीं थे, ऐसा करने का कारण संभवत: यही रहा होगा कि आपसी खींचतान को न्यूनतम किया जाए। विधायक देवेन्द्र वर्मा को भाजपा ने बतौर संयोजक उन्हें यह दायित्व सौंपा है कि पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस और नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह के बीच सामंजस्य बनाया जाए क्योंकि दोनों ही टिकट के प्रबल दावेदार थे और इन दोनों को सह संयोजक बनाया गया है। हालांकि टिकट की मांग खरगोन के पूर्व लोकसभा सदस्य कृष्णमुरारी मोघे भी कर रहे थे लेकिन चूंकि वे प्रदेश संगठन महामंत्री रह चुके हैं इसलिए उनसे पार्टी को यह उम्मीद कतई नहीं है कि वे पार्टी हितों के विपरीत कोई काम करेंगे। कांग्रेस में टिकट के दावेदार अरुण यादव के अलावा निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा थे जो अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन अब वे भी कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं।

खंडवा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे भी एक बार उपचुनाव जीत चुके हैं। चूंकि चुनाव प्रचार अभियान अब अंतिम चरण में प्रवेश कर रहा है इसलिए दोनों ही दलों ने अपनी समूची ताकत झोंक दी है। इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति वर्ग का दबदबा है और यहां आदिवासी और दलित मतदाता लगभग 7 लाख 68 हजार हैं जबकि पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की संख्या 4 लाख 76 हजार 280 है। अल्पसंख्यक वर्ग के भी एक लाख 86 हजार मतदाता हैं जबकि सामान्य वर्ग के 3 लाख 62 हजार मतदाता हैं। आदिवासी मतदाताओं को यहां निर्णायक समझा जा रहा है। नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के कारण यह उपचुनाव हो रहा है, वे ठाकुर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे तथा केवल एक चुनाव पिछड़े वर्ग के अरुण यादव से हारे थे इसके अलावा उन्होंने यहां से जितने चुनाव लड़े कोई नहीं हारा। इस बार पिछड़े वर्ग के अरुण यादव स्वयं चुनाव मैदान से हट गये तो भाजपा ने ठाकुर के स्थान पर पिछड़े वर्ग के ज्ञानेश्वर पाटिल को चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने ठाकुर राजनारायण पर दांव लगाया जो कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खेमे के हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आठों विधानसभा क्षेत्रों का राजनीतिक गणित बदल गया, दो क्षेत्रों मंधाता और नेपानगर के कांग्रेस विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये और इसी का नतीजा है कि चार विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस के पास अब दो ही बचे हैं। बड़वाहा और भीकनगांव में कांग्रेस विधायक हैं तो बुरहानपुर में पूर्व कांग्रेसी पृष्ठभूमि के सुरेंद्रसिंह शेरा विधायक हैं। जहां तक इस क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास का सवाल है 1962 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था जबकि 1977 में लोकदल के चुनाव चिन्ह पर जनता पार्टी उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में जनता पार्टी उम्मीदवार ठाकरे जीते। 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस जीती तो 1989 में भाजपा ने पहली बार खाता खोला। 1991 के उपचुनाव में फिर से कांग्रेस जीत गयी। 1996 में नंदकुमार सिंह चौहान भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में अरुण यादव के हाथों पराजित हो गये। यहां पर कांग्रेस को वापसी की उम्मीद है तो भाजपा के लिए अपना कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है।

और यह भी
अनसूचित जनजाति के लिए आरक्षित जोबट सीट पर उपचुनाव कांग्रेस की कलावती भूरिया के निधन के कारण हो रहा है। यहां पर इस मायने में दिलचस्प मुकाबला है कि कांग्रेस ने जहां महेश पटेल पर दांव लगाया तो वहीं भाजपा ने लगभग पचास साल से कांग्रेस की राजनीति करने वाली सुलोचना रावत को अपने पाले में लाकर मैदान में उतार दिया है। रावत दिग्विजय सिंह सरकार में राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं। कांग्रेस ने इस दलबदल को एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए मतदाताओं के गले यह बात उतारने की कोशिश की है कि पांच दशक की दलीय निष्ठा छोडऩे वाली सुलोचना रावत पर जनता कैसे विश्वास करे तो वहीं दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान द्वारा हाल ही में आदिवासी वर्ग के लिए की गयी महत्वपूर्ण घोषणाओं के साथ सरकार द्वारा इन वर्गों के लिए उठाये गये कल्याणकारी कदम से उम्मीद है कि दलबदल का तड़का लगाने के बाद इस सीट पर वह कब्जा कर लेगी। पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस सहानुभूति लहर के सहारे अपनी पकड़ कायम रखना चाहती है। बृजेंन्द्र सिंह राठौर की इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ रही है और वे कमलनाथ सरकार में महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री भी थे। उनकी मृत्यु के बाद इस क्षेत्र में कांग्रेस ने उनके पुत्र नितेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बनाया तो भाजपा ने समाजवादी पार्टी के पिछले चुनाव में उम्मीदवार रहे शिशुपाल सिंह यादव पर दांव लगाया है। देखने वाली बात यही होगी कि जोबट की तरह इस सीट पर भी दलबदल का तड़का लगाने के बाद भाजपा कांग्रेस की मजबूत पकड़ वाली सीट पर अपना कब्जा कर पाती या नहीं। सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। यहां पर भाजपा की प्रतिभा बागरी और कांग्रेस की कल्पना वर्मा के बीच असली चुनावी मुकाबला हो रहा है। भाजपा को इन उपचुनावों में विकास के मुद्दे पर जीत का भरोसा है तो कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि बदलाव की बयार में इस बार जीत उसकी ही होगी।

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