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बीएसएफ अधिकार क्षेत्र में विस्तार पर सवाल

गुरबचन जगत

हाल ही में गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर पंजाब में सीमा नियंत्रण रेखा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल द्वारा तलाशी, बरामदगी और गिरफ्तारी करने वाले अधिकार क्षेत्र का दायरा 15 कि.मी. से बढ़ाकर 50 कि.मी. कर दिया। स्पष्ट है इस आदेश को जारी करते वक्त केंद्रीय गृह मंत्रालय की मुख्य चिंता जाहिर है सुरक्षा की दृष्टि से है, खासकर जम्मू-कश्मीर में बढ़ती सीमापारीय घुसपैठ, आम नागरिकों की हत्याएं और पंजाब सीमा पर ड्रोन गतिविधियों में बढ़ोतरी के मद्देनजऱ। हालांकि पंजाब में ऐसा कुछ विशेष रूप से सामने नहीं आया है और यह निर्णय एहतियातन, नागरिकों और सुरक्षा बलों में खतरे की आशंका को लेकर सजगता बढ़ाने के उद्देश्य से ज्यादा लगता है।

इस पर आई पंजाब सरकार की प्रतिक्रिया अनुकूल नहीं रही और आदेश को वापस लेने की मांग की है। यहां तक कि सर्वदलीय बैठक में भी, जिसमें भाजपा शामिल नहीं हुई, इसको वापस लेने का प्रस्ताव पारित किया गया। सीमांत और अन्य इलाकों के बाशिंदों की प्रतिक्रिया खामोश किंतु नकारात्मक है। भौगोलिक दृष्टि से चूंकि पंजाब एक छोटा सूबा है, इस लिहाज से सीमा से 50 कि.मी. दायरा होने का मतलब है राज्य का लगभग आधा हिस्सा अधिकार क्षेत्र की जद में आ जाएगा। इसमें अमृतसर, फिरोज़पुर, तरनतारन, बटाला इत्यादि शहर भी आ जाते हैं। अमृतसर वैसे भी वह शहर है जिसे श्रीदरबार साहिब की उपस्थिति का आशीर्वाद मिला है और देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां अपना अकीदा पेश करने आते हैं। एक अनकहा डर यह बन गया है कि कहीं बीएसएफ 50 कि.मी. पट्टी में मनमानी कार्रवाई न करने लगे, यहां तक कि शहरों-कस्बों में भी। चूंकि पंजाब में चुनावी दौर है, इस धारणा को बल मिलता है कि कहीं इसका प्रयोग विपक्षियों को निशाना बनाने में न किया जाए।

यह डर केंद्र और राज्य सरकार के बीच आपसी सलाह-मशविरा न होने की वजह से बना। इतनी गोपनीयता की जरूरत नहीं थी, राज्य सरकार को भरोसे में लिया जाना चाहिए था। दूसरा, इस आदेश पर अमल कैसे होगा, इसकी और अधिक जानकारी देनी चाहिए थी या फिर इसका अर्थ है कि पंजाब में 50 कि.मी. अंदर तक बीएसएफ अपने नाके-चौकियां बनाएगी या सिर्फ तैनात बल की शक्तियों में विस्तार किया गया? अगर तो बीएसएफ अमला जरूरत पर पंजाब पुलिस से तालमेल कर अपनी नई शक्तियों का प्रयोग करेगा, तो इस पर ज्यादा आपत्ति नहीं हो सकती। सीमा के एकदम साथ लगते इलाकों में पंजाब पुलिस के थाने और कर्मियों की उपस्थिति खासी है और बीएसएफ की बड़ी सक्रियता में उनको साथ रखा जा सकता है। अधिकार क्षेत्र में विस्तार से पहले वाले समय में भी बीएसएफ और पंजाब पुलिस के बीच सूचना एवं अभियानों संबंधी जानकारी का आदान-प्रदान का सहयोग कायम था। अंतत: यह सब ऊपरी स्तर के नेतृत्व के बीच संबंधों और फलत: धरातल पर बने सौहार्द पर निर्भर करता है।

मैंने लंबे समय तक पंजाब पुलिस में काम किया है, जिसमें 4 वर्ष अमृतसर में बतौर एसएसपी कार्यकाल भी शामिल है, साथ ही मुझे बीएसएफ का महानिदेशक होने का सौभाग्य भी मिला है। दोनों बलों में, एसएसपी और महानिदेशक रहते हुए, मेरा वास्ता इनके बीच बहुत बड़े खिंचाव से कभी नहीं हुआ। वरिष्ठ अधिकारी नियमित रूप से आपस में मिलकर मसलों को सुलझा लेते हैं। इससे पहले, बीएसएफ का महानिदेशक रहते हुए, जब यह बल जम्मू-कश्मीर के काफी अंदर तक तैनात था, तब भी राज्य पुलिस के साथ सीमा और अंदरूनी भागों में निकटवर्ती सहयोग पाया था। अब भी, मेरा सुझाव होगा कि या तो केंद्रीय गृह सचिव या फिर बीएसएफ के महानिदेशक इस आदेश के क्रियान्वयन और पहलुओं के बारे में ज्यादा जानकारी दें, इससे भ्रांतियां खत्म होंगी। यह सीमावर्ती नागरिकों के भरोसे में इजाफा करेगा।

निस्संदेह राजनीतिक दलों का अपना एजेंडा होता है, इसलिए वे उसी मुताबिक चलते हैं। हम यह सुनिश्चित करें कि आम लोग तंग न हों और वे अपना काम बिना किसी डर कर सकें, खासकर जब सूबे में आज की तारीख में न तो विद्रोही गतिविधियों जैसे हालात हैं और न ही बड़ी तादाद में मानव और शस्त्रों की सीमापारीय घुसपैठ हो रही है। इससे आगे, वरिष्ठ और स्थानीय स्तर के अफसरों के बीच होने वाली नियमित बैठकों में कार्रवाई योग्य प्राप्त गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान वास्तविक समय में होता रहे। इस विषयवस्तु में स्थानीय पुलिस अहम भूमिका निभा सकती है। हम में से जिस किसी ने पंजाब या जम्मू-कश्मीर में काम किया है, यह बात हर कोई कबूल करेगा कि कार्रवाई योग्य सबसे भरोसेमंद गुप्त सूचना सदा स्थानीय पुलिस से मिलती है, धरातल पर काम करने वाले पुलिसवालों का राब्ता उस इलाके से होता है और लोग उन पर भरोसा कर जानकारी देते हैं। यदि स्थानीय पुलिस सूचना प्रदान करे और बीएसएफ अपना कार्यबल, तो यह युग्म विजयी होता है। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर और पंजाब में सेना और अर्ध-सैनिकों बलों में विशेष कार्यबल ज्यादा लोकप्रिय रहे। आज भी, कश्मीर में विशेष कार्यबल आतंकरोधी अभियानों की रीढ़ हैं।

याद रहे कि हमारा संवैधानिक ढांचा संघीय है, इसलिए कार्य का बंटवारा एकदम स्पष्ट होना चाहिए। कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है। बीएसएफ की स्थापना से पहले यह पंजाब पुलिस ही थी, जिसके जिम्मे सीमा की निगरानी थी। बीएसएफ के वजूद में आने के बाद, सीमारेखा से 15 कि.मी. तक इलाके की निगहबानी इसको दे दी गई। पंजाब पुलिस ने अपनी अलग बॉर्डर रेंज बनाई, जिसमें अमृतसर, गुरदासपुर और फिरोजपुर जिलों के सीमावर्ती थानाक्षेत्र शामिल हैं। बीसीएफ और पंजाब पुलिस के बीच निकट सहयोग सदा रहा है। इसलिए बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार करने की कोई वैध वजह नहीं लगती। अब राज्य और केंद्र सरकार को गृह मंत्रालय, बीएसएफ और राज्य प्रशासनिक इकाइयों के बीच बेहतर समन्वय बनाने का काम करना होगा। गृह मंत्रालय को अपने तौर पर अचानक एकतरफा फैसलों की घोषणा नहीं करनी चाहिए– सलाह लेनी सदा मददगार होती है। यह पहली मर्तबा है कि गृह मंत्रालय और बीएसएफ को सलाह देनी पड़ रही है कि आदेश के पहलुओं की व्याख्या करें। जो बात स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ा रही है, वह यह है कि राज्य के अंदरूनी हिस्सों में बीएसएफ जांच चौकियों की स्थापना और देहात, कस्बों, शहरों में बड़े पैमाने पर होने वाली तलाशियां। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा नए आदेश की तफ्सील देने और वास्तविक धरातल पर बीएसएफ एवं पंजाब पुलिस के बीच निकट समन्वय के परिणाम में मधुर कार्य-संबंध बने रहेंगे। केंद्र ध्यान रखे कि ऐसा आभास न बने कि राज्य सरकार के अधिकारों का हनन हो रहा है, खासकर पंजाब जैसे सीमांत सूबे में, जहां लंबे समय के बाद शांति स्थापना हो पाई थी। केंद्र सरकार को पंजाब में उदारतापूर्वक बड़े पैमाने पर विकास कार्यक्रम चलवाने चाहिए ताकि लंबे चले आतंकवाद और कई युद्धों से हुए नुकसान की भरपाई हो सके।

कुछ अर्से से, अपराध और कानून-व्यवस्था के विषय में राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में केंद्रीय एजेंसियों की दखलअंदाजी लगातार बढ़ती देखी गई है। बहुत से मामलों में सलाह-मशविरा नहीं किया जाता, परिणामस्वरूप अक्सर सूबे खुद को असहज स्थिति में पाते हैं। कभी एक राष्ट्रीय अखंडता परिषद थी, जिसकी बैठक साल में एक बार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुआ करती थी और सभी मुख्यमंत्री भाग लेते थे। यह वह मंच था, जहां केंद्र-राज्य संबंधों पर चर्चा होती थी, नतीजतन बेहतर समन्वय बना रहता था। परंतु पिछले समय में मैंने इस मंच के किसी सम्मेलन के बारे में नहीं सुना है। अगर यह अभी भी वजूद में है, तो इसको पुनर्जीवित कर नियमित अंतराल पर बैठकें आयोजित की जाएं, क्योंकि बहुत से केंद्र-राज्य मसले पैदा हो रहे हैं। वैसे भी, जब कभी राज्यों से संबंधित कोई महत्वपूर्ण फैसला लेना हो तो पहले उनसे विचार-विमर्श जरूर किया जाए।

यह पहलू भारत की सुरक्षा संबंधित मामलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सबकी एक राय हो। अपनी विशाल सीमा पर हम खतरों से घिरे हैं। उत्तरी और उत्तर-पूर्वी पहाड़ी सीमारेखा पर चीन भूमि संबंधी विवाद रखे हुए है, हमारा स्थाई बैरी बन चुका पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद और सीमारेखा और इलाकाई विवाद से लगातार परेशान करता रहता है। हमारी लंबी तटीय सीमारेखा पर स्मगलिंग और नशा संबंधित गतिविधियों की बाढ़ आई हुई है। इस राष्ट्र की सुरक्षा तलवार की धार पर टिकी है, तथापि हमारे राजनेता हर हीले-हवाले समाज में रार पैदा करने पर आमादा हैं। यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच रहा निकट समन्वय था, जिसके बूते हम आतंकवादियों के मंसूबे विफल कर पाए। करोड़ों की आबादी वाले इस विशाल देश को जरूरत है एक आधुनिक सुदृढ़ तंत्र की, जिसका परिचालन राष्ट्रीय एवं राज्यों की स्थानीय आवश्यकताओं से हो, न कि पक्षपाती सोच रखने वाले राजनीतिक दलों की सनक और पसंद के अनुसार। इतिहास साफ दर्शाता है कि जब तक हम आपस में बंटे रहे, बाहरी आतताइयों के लिए आसान शिकार थे। भारत, बल्कि भारतीय नेतृत्व को, स्वार्थपूर्ण राजनीति करने और देश को जागीर बनाने की बजाय राष्ट्र को पहले रखना चाहिए– लेकिन जिस केंद्र और सूबों के बीच इस कदर रिश्ता तल्ख है, देश सांप्रदायिक और जाति आधार पर आपस में बंटता जा रहा दिखाई दे रहा है, उसके मद्देनजर यह कर दिखाना, कहने भर से कहीं ज्यादा मुश्किल है।

यह वह लड़ाई है जिसे हारना हम गवारा नहीं कर सकते। यदि हमारे राजनेता चुनौती का सामना करने में निष्फल रहे और हमारी सीमाओं पर आन चढ़े दुश्मन का सामना करने को एक साझा मंच बनाने में कामयाब न रहे तो इतिहास में दर्ज होने वाले इन पलों के लिए आने वाली नस्लें हमें कोसेंगी।

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