- बकरी व भैंस पालकों के फार्मों की लरज़ा देने वाली हकीकत
- फार्मों से बरामद हो रहे जानवरों की लाशों के ढेर
- बाढ़ से हुई बर्बादी पर आंसू बहा रहे लाचार पशुपालक
- जिला इंतेजामियां की तैयारियां और पीड़ितों का शिकवा
चाँद खाँ, ब्यूरो चीफ, रामपुर/रूद्रपुर। बाढ़ का पानी उतर रहा है लेकिन उससे हुई बर्बादी के जख्मों के निशान उकर रहे हैं। शहर की सीमा से सटे गांवों में जलस्तर कम होने के बाद लोग अपने घर, डेयरी व फार्मों का रूख कर रहे हैं। लेकिन यहां पहुंचने के बाद जिस हकीकत से उनका सामना हो रहा है वो वास्तव में दिल दहला देने वाली है। ये मंजर जहां बाढ़ से हुई तबाही की दास्तानें बयान कर रहे हैं वहीं इस तबाही पर लाचार और बेबस पशु पालक आंसू बहाने को मजबूर हैं। क्या है इन फार्मों का दिल दहला देने वाला सच? आईये इसे कुछ अल्फाजों और कुछ तस्वीरों के साथ आप तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
तबाही का पहला मंज़र
शहर के मौहल्ला चिरान के रहने वाले इरशाद खां उर्फ शददू खां शहर के हाशिये पर बसे हजरतपुर में डेयरी फार्म का संचालन करते हैं। 40 गाय व भैंसां से उन्होंने डेयरी की शुरूआत की थी। रविवार से शुरू हुई बारिश व उत्तराखण्ड से पानी छोड़े जाने की सूचना मिली लेकिन हर बार की तरह शहर के लोग इस बार भी निश्चिन्त थे कि पानी शहर की सीमा पर दस्तक नहीं देगा। लेकिन इस बार के नतीजे उम्मीद के खिलाफ सामने आए। अचानक छोड़े गए 1.38 लाख क्यूसेक पानी ने शहर की सीमा तक आबादी व खेत खलिहान को अपनी चपेट में ले लिया। जिसका जो कुछ, जहां था वहीं रह गया। डेयरी संचालक शददू खां भी इन बेबसों में से एक थे। उनका कहना है कि रात होने के कारण वह डेयरी से पशुओं को नहीं निकाल सके। सुबह होने तक हालात बेकाबू हो चुके थे लेकिन फिर भी कुछ गाय भैंसें टै्रक्टर ट्राली की मदद से बचा ली गयीं। इसके बाद डेयरी पर जो नजारा सामने आया वो ऐसा था कि तकरीबन डेढ़ दर्जन गाय भैंसों की लाशें जहां तहां खूंटों के सहारे बंधी सैलाब की विभीषिका को बयान कर रही थीं। पशुओं के साथ उनका चारा आदि भी पूरी तरह से बर्बाद हो गया। शददू खां को इन पशुओं के मरने से तकरीबन 6 लाख रूपए का नुकसान हुआ है।
तबाही का दूसरा मंज़र
हजरतपुर करीब ही नालापार मोरी गेट के रहने वाले फार्मर आरिज खां के बकरी फार्म की इससे भी बुरी दशा सामने आई। उनका कहना है कि अचानक पानी छोड़े जाने से कुछ भी करने का मौका नहीं मिल पाया। अगले दिन फार्म को जाने वाले रास्ते पर पुलिस का पहरा था। सुरक्षा कारणों के चलते पुलिस किसी को भी अंदर नहीं जाने दे रही थी। ऐसे में सिवाए बेबसी से ताकते रहने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था। गुरूवार को पानी उतरा तो फार्म की खबर ली लेकिन यहां जो कुछ सामने आया उसने झिंझोड़कर रख दिया। फार्म में घुसते ही बकरे बकरियों की लाशों का ढेर सामने आया तो कुछ देर के लिए संभलना मुश्किल हो गया। फार्म में बरबरी, राजस्थानी और दूसरी कीमती नस्लों के बकरे बकरियां पलती थीं। 40 से अधिक बकरे बकरियों में से मात्र 2-3 बकरे बचे। बाकी सभी सैलाब की भेंट चढ़ गए। फार्म से मिला हुआ उनका तालाब भी था जिसमें लाखों रूपए की रोहू, कतला व दूसरी प्रजातियों की मछलियां थीं। सैलाब सबको बहा ले गया।
जिन्दगी पटरी पर लाने को मदद की आस ताकते बेबस
कोरोना महामारी और 100 साल के अरसे में पहली बार आई इस तरह की बाढ़ ने किसान, मजदूर और गरीब तबके को पूरी तरह से तोड़कर रख दिया है। समाज के इन तबकां के लिए जिंदगी का दायरा बहुत ही तंग हो चला है। महामारी से मिले जख्म अभी पूरी तरह से खुश्क भी नहीं हो पाए थे कि बाढ़ ने उन्हें फिर से खुरचकर ताजा कर दिया है। बड़ी संख्या में परिवारों के सामने रोजी रोटी की समस्या अभी है और आगे और भयंकर रूप में सामने आने का अंदाजा लगाया जा रहा है। वक्त की मार के हाथों अपना सबकुछ गंवा बैठे लाचार और बेबस लोग अब सरकारी मदद की आस लगाये बैठे हैं। अगर इनकी सिसकियां और आहें जिले के जिम्मेदारों और सत्ता के गलियारों तक पहुंचने में कामयाब हो गयीं तब शायद नुकसान भरपाई ईमानदारी से कर दी जाए और तबाहहालों की जिन्दगी पटरी पर आ सके।
जिला इंतेजामियां की तैयारियां और पीड़ितों का शिकवा
बाढ़ से बर्बाद हुए लोगों को जल्द से जल्द राहत पहुंचाने के लिए सर्वे से लेकर विभिन्न स्तरों पर युद्ध स्तर पर कार्य करने का दावा प्रशासन कर रहा है। जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार मॉदड़ के निर्देशानुसार सभी उपजिलाधिकारियों द्वारा क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक एवं लेखपालों के साथ बैठक करके सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप गाटावार सर्वे करके विभिन्न किस्मों की फसलों के नुकसान के आंकलन के बारे में निर्देश जारी करने की बात भी की जा रही है। एडीएम वित्त एवं राजस्व/प्रभारी अधिकारी आपदा डा0 वैभव शर्मा के अनुसार बाढ़ के कारण हुए फसल के नुकसान के साथ-साथ आवास अथवा पशु हानि आदि के सम्बन्ध में व्यापक स्तर पर सर्वे कार्य कराया जा रहा है। वहीं इसके उलट शुक्रवार को बैंजना गांव के किसानों ने आरोप लगाया कि उनके गांव में फसलों का सर्वे नहीं किया जा रहा है। जिला पंचायत सदस्य मुस्तफा हुसैन के नेतृत्व में किसानों ने प्रदर्शन भी किया। प्रदर्शनकारी किसानों का कहना था कि उनकी फसलें बर्बाद हो गयीं। कच्चे घर गिर गए। रास्ते कटे पड़े हैं। बिजली के खंभे गिर गए हैं लेकिन किसी भी अधिकारी ने गांव में आकर कोई सुध नहीं ली है। प्रदर्शन करने वालों में नईम अहमद, अच्छन नेता, नजरूल पधान, कलुआ अंसारी, शमशाद, इनायत अली, बनने अली, भूरा, इस्फ्तेकार अली, कलवे अली, भूरा, अहसान अली आदि दर्जनों लोग शामिल थे।
यह तो महज़ झलक है, असल हालात सामने आना बाकी
वक्त ने सैलाब की शक्ल में जो सितम किसानों, पशुपालकों और दूसरे लोगों पर ढाये हैं यह दो उदाहरण सिर्फ उनकी एक झलक पेश करते हैं। असल हालात अभी सामने आने बाकी हैं। दर्जनों गांव अभी भी पानी की आगोश में हैं और वहां पहुंच आसान नहीं है। बाढ़ग्रस्त गांवों में वहां के बाशिंदों के दिन कैसे गुजर रहे हैं और रातें कैसे कट रही हैं इसका अंदाजा कुर्सियों पर बैठकर चार लाईनें लिखकर नहीं लगाया जा सकता। तकलीफों और परेशानियों का दायरा इससे कहीं बड़ा है।
इस आसमानी आफत के बाद बर्बाद हुए परिवारों के सामने अब सिर्फ एक ही सबसे बड़ा सवाल है कि नए सिरे से ज़िंदगी को कहाँ से और कैसे दोबारा शुरू किया जाए ।