- करीबी राज्यों में उत्तराखण्ड से तेजी से पलायन कर रहे वन्य जीव
- लगातार बढ़ रहीं इंसान और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं
- हालात संभालने को तोड़ना होगा विभाग और वन तस्करों का नेक्सेस
चाँद खाँ, ब्यूरो चीफ, रामपुर/रूद्रपुर। पड़ौसी राज्य उत्तराखण्ड से रामपुर और दूसरे सीमावर्ती जिलों में इंसानी आबादी की ओर वन्यजीवों का पलायन तेज हो रहा है। वन्यजीव और इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सवाल यह पैदा होता है कि आखिर इस सबका असल जिम्मेदार कौन है? यह सवाल एक बार फिर लोगो के दिमाग में कौंधने लगा है। क्या मानव और वन्यजीवों की बीच संघर्ष की स्थितियां हमेशा से ऐसी ही थीं या फिर इनमें अब तेजी आ रही है। अगर इसका जवाब में न है तो इसके कारण और निवारण पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा वरना इंसानों और वन्यजीवों के संघर्ष की घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी होती ही जाएगी।
जिले में वन्यजीवों के आतंक की हालिया घटनाएं
गत वर्ष 2019 में दो नर हाथी उत्तराखण्ड से जिले की सीमा में प्रवेश कर गए। जिले के बिलासपुर व मिलक आदि क्षेत्रों में दोनों ने जमकर उत्पात मचाया। यहां तक कि एक किसान को मार डाला और दूसरे को जख्मी कर दिया। कई जगहों के एक्सपर्ट और तीन हथनियों की मदद से कई दिनों की मशक्कत के बाद दोनों को जंजीरों में जकड़ा जा सका। इसके बाद लॉकडाउन के दौरान शहर की सीमा में एक तेंदुए के घुस आने से काफी दिनों तक लोग खौफजदा रहे। अब पिछले एक महीने से मसवासी क्षेत्र में एक तेंदुए ने अफरातफरी मचाए रखी। इस तेंदुए को वन विभाग की टीम ने 2 नवंबर को पिंजरे में कैद करने में कामयाबी हासिल की। तेंदुए के पकड़े जाने के बाद क्षेत्रीय लोगों ने राहत की सांस ली है। बहरहाल ये कुछ हालिया घटनाएं थीं लेकिन ऐसा बहुत बार होता रहा है जिसमें वन्यजीवों ने इंसानी आबादी की ओर पलायन किया है। आसपास के जिलों से भी आए दिन वन्यजीवों के बस्तियों में घुस आने और आतंक मचाने की खबरें आती रहती हैं।
उत्तराखण्ड से तेज हो रहा वन्यजीवों का पलायन
रामपुर की बात करें तो स्टेट मर्ज होने के काफी बाद तक यहां के पीपली और डंडिया आदि जंगलों में शेर, चीता, तेंदुआ, हिरन, सांभर आदि की भरमार रही लेकिन अब यहां के जंगल इन जानवरों से महरूम हैं और यह तकरीबन खत्म ही हो चुके हैं। अब उत्तराखण्ड की सीमा से रामपुर और दूसरे जिलों में वन्यजीव पलायन कर रहे हैं और इसमें लगातार तेजी आ रही है। खासतौर पर रामपुर के बिलासपुर, स्वार व टांडा से अकसर खूंखार वन्यजीवों के जनपद की सीमा में घुस आने की खबरें मिलती रहती हैं। दरअसल यह सभी इलाके सरहदी हैं और इनकी सीमाएं पड़ौसी राज्य से मिलती हैं।
जंगल बहुतायत में थे तो सब अपनी सीमाओं में थे
वन्यजीवों का इंसानी आबादियों की ओर रूख करने का सबसे प्रमुख कारण जंगलों की बर्बादी ही है। जब तक जंगल बहुतायत में थे तब तक जंगली जानवर और इंसान सब अपनी सीमाओं में थे लेकिन जंगलों के अंधाधुंध विनाश ने तरह तरह की समस्यायें पैदा कीं। इन समस्याओं में से एक वन्यजीवों का पलायन भी है। नतीजे के तौर पर तरक्की की अंधी दौड़ का खामियाजा आज इंसान भी भुगत रहे हैं और जंगली जीव जंतु भी। जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार पशु पक्षी हुए हैं इससे तो किसी को भी इंकार नहीं है। जंगलों के कटान को रोककर बड़ी हद से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं किया गया तब भविष्य में इंसान और वन्यजीवों के संघर्ष की घटनाएं वर्तमान की अपेक्षा और तेज होंगी।
दावों के मुंह पर कालिख पोत रही हैं दलीलें
वन्यजीवों के संरक्षण और पर्यावरण को बचाने के लिए दावे चाहे जितने किये जाते हों लेकिन दूसरी योजनाओं की तरह जमीनी हकीकत निराश करने वाली ही होती है। वर्ष 2020 में स्टेट बोर्ड फॉर वाईल्ड लाईफ यूपी की 10वीं बैठक में मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष से संबंधित बिंदु पर चर्चा एवं कार्यवाही के बाद निर्णय लिया गया कि कुछ खास वन क्षेत्रों में रैपिड रेस्क्यू टीम के गठन को मंजूरी दी जाएगी। इसके अलावा रेस्क्यूड वन्यजीवों के लिए रेस्क्यू सेंटर की स्थापना की बात भी कही गई। लेकिन वन्यजीवों के पलायन और उनके और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष के असल कारकों को लेकर न कोई चर्चा हुई और न ही कोई ठोस फैसला लिया गया।
वन विभाग और वन तस्करों का गठजोड़ है असल जिम्मेदार
जब तक मनुष्यों और वन्य जीवों के बीच इस संघर्ष के उत्पन्न होने वाले कारणों पर रोक नहीं लगाई जाएगी हालात ठीक नहीं होंगे। वन्यजीवों को इंसानी आबादी की ओर बढ़ने से रोकने के लिए सबसे पहला काम वनकर्मियों और वन तस्करों के गठजोड़ को तोड़ना है। वन विभाग और लकड़ी माफियाओं के गठबंधन को तोडे़ बिना इस दिशा में आगे बढ़ पाना संभव ही नहीं है। जानकारों का मानना है कि जंगलों के सामान्य ईको सिस्टम को तोड़कर वन्य जीवों को जंगलों से निकलने को मजबूर किया जा रहा है। कृषि विस्तार, आबादी के लिये आवास, पशुपालन व बिजली और उद्योग स्थापना के लिए नई-नई योजनाओं के क्रियान्वयन को जंगलों का अंधाधुंध दोहन रोककर और खासकर वन तस्करों और वन विभाग के गठजोड़ को तोड़कर वन्य जीवों के पलायन और उनके बीच संघर्ष को रोका जा सकता है